हाल ही में गोवा में एक महिला पत्रकार ने सेक्शुअल हरैसमेंट का आरोप लगाया जिसके बाद पुलिस ने इस मामले में संज्ञान लेते हुए आरोपी के खिलाफ रेप का केस दर्ज कर लिया है। वर्क प्लेस पर सेक्शुअल हरैसमेंट का मामला हो या फिर कहीं और, ऐसे मामलों में क्या कहता है कानून, यह जानना जरूरी है। साथ ही नए ऐंटि रेप लॉ में क्या कानूनी प्रावधान किए गए हैं, इस बारे में विस्तार से जानना जरूरी है।
हाई कोर्ट के सरकारी वकील नवीन शर्मा बताते हैं कि जो भी मामला संज्ञेय है, उसमें पुलिस पीड़िता की शिकायत पर या फिर खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती है। लेकिन लड़की का बयान ऐसे मामले में महत्वपूर्ण साक्ष्य होता है।
1997 में सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा जजमेंट के तहत गाइडलाइंस बनाई थी। इस मामले में महिला ने एक पीआईएल दाखिल की थी और वर्क प्लेस पर होने वाले सेक्शुअल हरैसमेंट को रोकने के लिए प्रावधान किए जाने की गुहार लगाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में गाइडलाइंस बनाई थी, जो तमाम दफ्तरों में लागू है। इसके तहत एंप्लॉयर की जिम्मेदारी है कि वह गुनहगार के खिलाफ कार्रवाई करे। सुप्रीम कोर्ट ने 12 गाइडलाइंस बनाई हैं जिनके तहत अनुशासनात्मक से लेकर क्रिमिनल कार्रवाई किए जाने की बात कही गई है।
-एंप्लॉयर या अन्य जिम्मेदार अधिकारी की ड्यूटी है कि वह सेक्शुअल हरैसमेंट को रोके।
-सेक्शुअल हरैसमेंट के दायरे में शारीरिक छेड़छाड़, शारीरिक टच करना, सेक्सुअल फेवर की डिमांड या आग्रह करना, महिला सहकर्मी को पॉर्न दिखाना, अन्य तरह से आपत्तिजनक व्यवहार करना या फिर इशारा करना आता है।
-इन मामलों के अलावा अगर कोई ऐसा ऐक्ट जो आईपीसी के तहत ऑफेंस है तो एंप्लॉयर की ड्यूटी है कि वह इस मामले में कार्रवाई करते हुए संबंधित अथॉरिटी को शिकायत करे।
-इस बात को सुनिश्चित किया जाएगा कि विक्टिम अपने दफ्तर में किसी भी तरह से पीड़ित-शोषित नहीं होगी।
-इस तरह की कोई भी हरकत दुर्व्यवहार के दायरे में होगा और इसके लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का प्रावधान है।
-प्रत्येक दफ्तर में एक कंप्लेंट कमिटी होगी जिसकी चीफ महिला होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि कमिटी में महिलाओं की संख्या आधे से कम न हो। साथ ही साल भर में आई शिकायतों और कार्रवाई के बारे में सरकार को रिपोर्ट करना होगा।
-मौजूदा समय में वर्क प्लेस पर सेक्शुअल हरैसमेंट रोकने के लिए विशाखा जजमेंट के तहत ही कार्रवाई होती है। इस बाबत कोई कानून नहीं है, इस कारण गाइडलाइंस प्रभावी है।
-अगर कोई ऐसी हरकत जो आईपीसी के तहत अपराध है, तो उस मामले में शिकायत के बाद केस दर्ज किया जाता है। कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ आईपीसी की संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई होती है। साथ ही उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई भी की जाती है।
16 दिसंबर की गैंग रेप की घटना के बाद सरकार ने वर्मा कमिशन की सिफारिश पर ऐंटि रेप लॉ बनाया गया है। इसके तहत जो कानूनी प्रावधान किए गए हैं, उसमें रेप की परिभाषा में बदलाव किया गया है। सीनियर ऐडवोकेट रमेश गुप्ता के मुताबिक, आईपीसी की धारा-375 के तहत रेप के दायरे में प्राइवेट पार्ट या फिर ओरल सेक्स दोनों को ही रेप माना गया है। साथ ही प्राइवेट पार्ट के पेनिट्रेशन के अलावा किसी चीज के पेनिट्रेशन को भी इस दायरे में रखा गया है।
-अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट पार्ट या फिर अन्य तरीके से पेनिट्रेशन करता है तो वह रेप होगा।
-अगर कोई शख्स महिला के प्राइवेट पार्ट में अपने शरीर का अंग या फिर अन्य चीज डालता है तो वह रेप होगा।
-बलात्कार के वैसे मामले जिसमें पीड़िता की मौत हो जाए या कोमा में चली जाए, तो फांसी की सजा का प्रावधान किया गया।
-रेप में कम से कम 7 साल और ज्यादा से ज्यादा उम्रकैद की सजा का प्रावधान किया गया है।
-नए कानून के तहत छेड़छाड़ के मामलों को नए सिरे से परिभाषित किया गया है। इसके तहत आईपीसी की धारा-354 को कई सब सेक्शन में रखा गया है।
-354 ए के तहत प्रावधान है कि सेक्सुअल नेचर का कॉन्टैक्ट करना, सेक्सुअल फेवर मांगना आदि छेड़छाड़ के दायरे में आएगा। इसमें दोषी पाए जाने पर अधिकतम 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
-अगर कोई शख्स किसी महिला पर सेक्सुअल कॉमेंट करता है तो एक साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
-354 बी के तहत अगर कोई शख्स महिला की इज्जत के साथ खेलने के लिए जबर्दस्ती करता है या फिर उसके कपड़े उतारता है या इसके लिए मजबूर करता है तो 3 साल से लेकर 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
-354 सी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला के प्राइवेट ऐक्ट की तस्वीर लेता है और उसे लोगों में फैलाता है तो ऐसे मामले में एक साल से 3 साल तक की सजा का प्रावधान है। अगर दोबारा ऐसी हरकत करता है तो 3 साल से 7 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
-354 डी के तहत प्रावधान है कि अगर कोई शख्स किसी महिला का जबरन पीछा करता है या कॉन्टैक्ट करने की कोशिश करता है तो ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक कैद की सजा का प्रावधान है।
-जो भी मामले संज्ञेय अपराध यानी जिन मामलों में 3 साल से ज्यादा सजा का प्रावधान है, उन मामलों में शिकायती के बयान के आधार पर या फिर पुलिस खुद संज्ञान लेकर केस दर्ज कर सकती है।
-जो मामले असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में आते हैं, उसमें पीड़िता अदालत में कंप्लेंट केस दाखिल कर सकती है जिसके बाद अदालत साक्ष्यों के आधार पर आरोपी को समन जारी करता है और फिर केस चलता है।